"ऐसी ही स्वार्थी सियासी सोंच, अल्पसंख्यकों के विकास का लोच रहा" और "वोटों की स्वार्थी मंडी" से "विकास की समावेशी पगडण्डी" के साथ "क्रूर, कम्युनल, क्रिमिनल कपट” की जाती रही।
आज देश साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण को ध्वस्त कर समावेशी सशक्तिकरण का ध्वजवाहक इस लिए बन पाया है कि मोदी-योगी युग में "अमर, अब्दुल, अन्टोनी" की समावेशी विकास में भागीदारी ने "चिविंगम की तरह चूसो और चलता करो" वाली साम्प्रदायिक वोटों के ठगी के ठौर- ठिकानों की तालाबन्दी और नाकाबंदी कर दी है।
आज जब बिना भेदभाव सभी की समृद्धि, सुरक्षा, शिक्षा सुनिश्चित हो रही है तो अल्पसंख्यकों के हितों को अपने सियासी स्वार्थ की बलि चढाने वाले राजनीतिक सूरमाओं के सूपड़े साफ हो रहे हैं।
आज माहौल, मूड़, मुद्दे बदले हैं, साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण नहीं समावेशी सशक्तिकरण का "मोदी मैजिक" समाज के सभी हिस्सों में असर दिखा रहा है, विकास और विश्वास के माहौल ने समाज के सभी वर्गो को तरक्की का बराबर का हिस्सेदार भागीदार बनाया है।
अल्पसंख्यकों के विकास को देश के विकास से अलग देखना उन्हे प्रगति की मुख्यधारा से काटने का राजनीतिक छल है। सच्चर कमेटी के नाम पर मुसलमानों के भरोसे को भय और भ्रम में बदलने की कोशिश हुई।
(2) दलितों, आदिवासियों के सामाजिक, आर्थिक सशक्तिकरण से प्रतिस्पर्धा का बहाना बनाकर मुसलमानों का सियासी तुष्टीकरण का खेल खेला गया, भ्रम पैदा किया गया कि मुसलमानों के हालात दलितों से ज्यादा खराब हैं।
सच्चाई यह है कि दलितों का पिछड़ापन ऐतिहासिक-सामाजिक कारणों से रहा, जबकि मुसलमानों की गरीबी "सियासी छल का परिणाम" है।
आज मोदी-योगी और अन्य भाजपा सरकारों की सभी कल्याणकारी योजनाओं के लाभार्थियों में बड़ी तादाद में अल्पसंख्यक समुदाय से भी हैं। भाजपा सरकारों की बिजली, सड़क, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा, मकान, रोजगार, आर्थिक, सामाजिक सशक्तिकरण की योजनाओं का बराबर का लाभ अल्पसंख्यकों को भी हो रहा है।
आज अल्पसंख्यक समुदाय की सोंच-समझ में सकारात्मक-रचनात्मक परिवर्तन आया है, इसी लिए वह वोटों की जागीरदारी को पछाड़कर, विकास की हिस्सेदारी को प्राथमिकता दे रहा है।