o देश की चुनावी व्यवस्था, प्रक्रिया में बड़े और कड़े सुधार की जरूरत है।
o पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी, “राजनैतिक शुद्धीकरण” और “सियासती शुचिता के संस्थान” हैं। चुनाव सुधार की दिशा में उनके सिद्धांत सार्थक सबक हैं।
o वर्ष 2000 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के समय कई महत्वपूर्ण चुनाव सुधार हुए जिसमें मतदाता की आयु 21वर्ष से 18 वर्ष करना, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन, दो स्थानों से ज्यादा चुनाव लड़ने पर रोक, चुनावी खर्च पर सीमा, राजनीति में अपराधीकरण पर अंकुश आदि शामिल है।
o प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा भी चुनाव सुधार की दिशा में कई पहल हुए हैं। चुनावों में राजनैतिक दलों, उम्मीदवारों द्वारा काले धन के इस्तेमाल पर कन्ट्रोल एवं आर्थिक पारदर्शिता के लिए मोदी सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड की कानूनी व्यवस्था बनाई।
(1)o मोदी सरकार द्वारा चुनावी सुधारों में मतदाताओं के मताधिकार को सरल-सुलभ करना, मतदाता पहचान पत्र का विस्तार, धन-बल पर कानूनी अंकुश, नॉन सीरियस उम्मीदवारों और पार्टियों पर दिशानिर्देश, एवं "एक देश, एक चुनाव" का आह्वाहन भी शामिल है।
o वक्त की जरुरत के हिसाब से विभिन्न चुनावी सुधारों के साथ "एक देश एक मतदाता सूची" पर भी काम की जरूरत है। पंचायत, नगर निगम, नगर पालिका, विधानसभा, लोकसभा एवं अन्य चुनावों की अलग-अलग मतदाता सूचियां भ्रम ही नहीं, मतदाता सूची की विश्वसनीयता पर सवाल भी खड़े करती हैं।
o "एक देश एक वोटर लिस्ट" और "एक देश एक वोटर कार्ड" इस समस्या का समाधान कर सकता है।
(2) o चुनावी राजनीति में धन-बल, बाहुबल के प्रति देश को सचेत करते हुए पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का स्पष्ट संदेश है कि, "हमें सही व्यक्ति को वोट देना चाहिए ना कि उसके बटुए को, पार्टी को वोट दें किसी व्यक्ति को नहीं, किसी पार्टी को वोट न दें बल्कि उसके सिद्धांतों को वोट देना चाहिए।"
o अवसरवाद जो आज की सियासत का सिद्धांत बन गया है उसके गम्भीर खतरों के प्रति जागरूक करते हुए दीनदयाल जी कहते हैं कि, "अवसरवाद से राजनीति के प्रति लोगों का विश्वास खत्म होता जा रहा है।“
o चुनाव लोकतंत्र का पर्व है, इसके प्रति विश्वास और उत्साह लोकतांत्रिक मूल्यों, मर्यादा और आस्था को मजबूत करता है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत को यही जनतांत्रिक अधिकार, लोकतंत्र की डोर से जोड़कर रखता है।
o पंडित दीनदयाल जी के विचार "एक भारत श्रेष्ठ भारत" की लोकतान्त्रिक, सांस्कृतिक संकल्प का पुख्ता एहसास कराते हैं।
(3)o प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी, पंडित दीनदयाल जी के इन्हीं "अंत्योदय, समरसता, राष्ट्रवाद और राजनीतिक शुचिता" के संकल्प को सिद्धि बना कर "एक भारत श्रेष्ठ भारत "के "सफल सफर के सारथी" बन गए हैं।
o "एकात्म मानववाद" और "अंत्योदय", प्रधानमंत्री श्री मोदी के मार्गदर्शक सिद्धांत हैं। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के "एकात्म मानववाद" के दर्शन और "अंत्योदय" की विचारधारा को श्री मोदी ने "सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास" के संकल्प का हिस्सा बनाया।
o दीनदयाल जी और उनकी आर्थिक नीतियों ने हमेशा गरीबों की भलाई पर जोर देने की बात की है। उनके आर्थिक विचार में पंक्ति के अंतिम पड़ाव पर खड़ा व्यक्ति शामिल रहा है।
o यह प्रधानमंत्री श्री मोदी द्वारा अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति के कल्याण के लिए बनायी गई योजनाओं-नीतियों में साफ नजर आता है।
(4)o भारत के नेतृत्व-नीतियों और दीनदयाल जी जैसे महापुरुषों के संस्कार का नतीजा है कि आज दुनिया, हिंदुस्तान को संकट के समाधान के सारथी के रूप में विश्वास के साथ देख रही है।
o हमारे संस्कार, संकल्प, सोंच को दीनदयाल जी के "एकात्म मानववाद" और अंत्योदय" के सिद्धांत मजबूती देते हैं।
o प्रधानमंत्री श्री मोदी ने दीनदयाल जी के सिद्धांत को सिद्धि बनाया और परिश्रम की पराकाष्ठा से भारत के विश्व गुरू बनने के रास्ते को आसान किया।