आज जनादेश की चोट से घायल लोग देश के सौहार्द, भाईचारे, एकता के ताने-बाने को तार-तार करने की साजिशी सियासत में लगे हैं। नागरिकता बिल या किसी भी अन्य कानून से भारत के किसी भी मुसलमान की नागरिकता और अधिकारों पर कोई सवालिया निशान या ख़तरा नहीं है। सब को मालूम है किसी की नागरिकता नहीं जा रही है, हर हिंदुस्तानी नागरिक उसमे मुसलमान भी हैं, की नागरिकता पर कोई प्रश्न ना था ना है, ना रहेगा।
मुस्लिम समाज के नागरिक, आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक, संवैधानिक अधिकार पूरी तरह "महफूज और मजबूत" हैं। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार "समावेशी सशक्तिकरण, सर्वस्पर्शी समृद्धि" को समर्पित रही है। बिना भेदभाव, बिना धर्म-जाति देखे हर जरूरतमंद की आँखों में खुशी, जिंदगी में खुशहाली के संकल्प के साथ लगातार काम कर रही है। सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट CAA, NRC और अब राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर NPR को अपडेट करने के निर्णय को लेकर समाज के एक वर्ग में “भय और भ्रम का भूत” खड़ा किया जा रहा है। बोगस बैशिंग ब्रिगेड द्वारा "झूठ के झाड़ से सच के पहाड़" को छिपाने की कोशिश की जा रही है।
सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है, 1955 में पंत-मिर्जा एग्रीमेंट हुआ यानी भारत के गृहमंत्री पंडित गोविन्द बल्लभ पंत एवं पाकिस्तान के गृहमंत्री मेजर जनरल इस्कंदर मिर्जा के बीच समझौता हुआ,इस समझौते के तहत भारत सरकार की जिम्मेदारी है कि पाकिस्तान में मौजूद गैर-मुस्लिम धार्मिक स्थलों की सुरक्षा और संरक्षण की चिंता करनी है। साथ ही गैर-मुस्लिमों के धार्मिक-सामाजिक सरोकार की भी चिंता करनी है। 2006 में कांग्रेस सरकार द्वारा गठित अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के मैंडेट में भी कहा गया है
"पाकिस्तान अल्पसंख्यकों के लिए नर्क और हिंदुस्तान स्वर्ग साबित हुआ है।"यही सच्चाई कुछ विघटनकारी ताकतों के आँख की किरकिरी बनी हुई है और वे भारत की "अनेकता में एकता" की ताकत को कमजोर करने की साजिशों का ताना-बाना बुन रहे हैं। हमें समझना चाहिए कि जनतंत्र से पराजित लोगों की "गुंडातंत्र" से जनतंत्र का अपहरण करने की कोशिश कामयाब नहीं हो सकती। कुछ राजनैतिक दलों की सरकारें कहने लगी कि हम संसद द्वारा पारित नागरिकता कानून नहीं लागू करेंगे।
संविधान के आर्टिकल 246- नागरिकता के सम्बन्ध में कानून बनाने का अधिकार संसद को है। संविधान का आर्टिकल 245 - 256 राज्यों को संसद द्वारा बनाये गए कानून को लागू करने को कहता है। संविधान की शपथ के साथ बनी कुछ राज्य सरकारें संविधान की धज्जियाँ उड़ाती दिखें तो यह बड़े ही दुःख की बात है। नागरिकता अधिनियम, 1955 में 7 बार संशोधन किया जा चुका है। नागरिकता संशोधन बिल Humiliating Injustice को Humanitarian Justice की भावना से भरपूर है। नागरिकता बिल 2019 "अमानवीय अन्याय" से पीड़ितों को "मानवीय न्याय" दिलाने के संकल्प का सच है। गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने कहा था कि भारत मानवता का समुद्र है। "वसुधैव कुटुम्बकम" का मूल संस्कार - संकल्प और सोंच है भारत की।
इसी मानवता के समुद्र, इसी "वसुधैव कुटुम्बकम" के संस्कार से भरपूर भारत ने दशकों से जुल्म और अन्याय से पीड़ित लोगों को न्याय दिलाने का कदम उठाया है। जब बंटवारा हुआ तो जहाँ एक तरफ इसी भारतीय संस्कार और संस्कृति का नतीजा था कि भारत पंथनिरपेक्ष देश बना, पर पाकिस्तान ने इस्लामी मुल्क का रास्ता चुना। बंटवारे के बाद भारत में हिन्दुओं की जनसँख्या 85 प्रतिशत, वहीँ मुसलमान 9.8 प्रतिशत थे। बंटवारे के बाद पाकिस्तान में अल्पसंख्यक 24 प्रतिशत से ज्यादा थे लेकिन आज 2 प्रतिशत के इर्द गिर्द बचे हैं।
बंटवारे के बाद 1951 की जनगणना के मुताबिक भारत में हिन्दू 84 प्रतिशत थे और अल्पसंख्यक लगभग 15 प्रतिशत ---- मुस्लिम- 9 प्रतिशत, ईसाई- 2.3 प्रतिशत, सिख-1.89 प्रतिशत, बौद्ध- 0.74 प्रतिशत, जैन-0.46 थे। वहीँ 2011 की जनगणना के मुताबिक हिन्दू- 79.80 प्रतिशत, मुस्लिम- 14.23 प्रतिशत, सिख- 1.72 प्रतिशत, ईसाई- 2.30 प्रतिशत, बौद्ध- 0.70 प्रतिशत, जैन- 0.37 प्रतिशत थे। वहीँ पाकिस्तान में अल्पसंख्यक बंटवारे के समय 24 प्रतिशत से ज्यादा थे पर आज पाकिस्तान में 24 प्रतिशत से घटकर 2 प्रतिशत रह गए हैं यानि अल्पसंख्यक जनसँख्या 22 प्रतिशत घट गई। वहीँ हिंदुस्तान में अल्पसंख्यकों की जनसँख्या 14 प्रतिशत से 19 प्रतिशत से भी ज्यादा हो गई।
कौन से कारण हैं कि पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान में हिन्दू, सिक्ख, ईसाई, जैन, बौद्ध आदि ख़त्म होते गए? सीधा-सीधा कारण है जुल्म, हत्या, जबरन धर्मान्तरण, जो थोड़े से बचे वो भी सुरक्षित ठिकाना ढूंढ रहे हैं, अपनी जड़ों से जुड़ने को बेताब हैं। नागरिकता संशोधन बिल, धर्म के आधार पर Discrimination से पीड़ितों को Dignity और सुरक्षा देगा।
भारतीय अल्पसंख्यकों की "सुरक्षा, समावेशी समृद्धि एवं सम्मान", "संवैधानिक संकल्प" से ज्यादा समाज की "सकारात्मक सोंच" का नतीजा है। खासतौर से बहुसंख्यक समाज का। भारत के बहुसंख्यक समाज की सोंच, अपने देश के अल्पसंख्यकों की "सुरक्षा और सम्मान” की गारंटी देने वाली है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने अल्पसंख्यकों सहित समाज के सभी जरूरतमंदों को विकास की मुख्यधारा का बराबर का हिस्सेदार-भागीदार बनाया है। यूपीए सरकार के समय अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय का बजट 3500 करोड़ रूपए था जिसे बढाकर मोदी सरकार ने 5000 करोड़ कर दिया है।
"हुनर हाट", "गरीब नवाज़ रोजगार योजना", सीखो और कमाओ, नई मंजिल, नई रौशनी आदि रोजगारपरक कौशल विकास योजनाओं के माध्यम से पिछले 5 वर्षों में 8 लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार और रोजगार के मौके उपलब्ध कराये गए हैं। शैक्षिक सशक्तिकरण की दिशा में पिछले 5 वर्षों में 3 करोड़ 54 लाख अल्पसंख्यक समुदाय के छात्र-छात्राओं को विभिन्न स्कॉलरशिप्स दी गई हैं।
प्रधानमंत्री जन विकास कार्यक्रम के तहत देश भर में अल्पसंख्यक बाहुल्य क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर आधारभूत सुविधाओं, स्कूल, कॉलेज, आईटीआई, हॉस्पिटल, हॉस्टल, सद्भाव मंडप, कॉमन सर्विस सेंटर, हुनर हब, आवासीय स्कूल, मार्किट शेड इत्यादि का निर्माण किया गया है।प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 2014 से लेकर अब तक की सरकार का लेखा-जोखा अगर देखें तो एक वाक्य में कहा जा सकता है, यह सरकार "समावेशी सशक्तिकरण, सर्वस्पर्शी समृद्धि" को समर्पित रही है, बिना भेदभाव, बिना धर्म-जाति देखे हर जरूरतमंद की आँखों में खुशी, जिंदगी में खुशहाली के संकल्प के साथ लगातार काम कर रही है।
2 करोड़ गरीबों को घर दिया तो उसमे 31 प्रतिशत अल्पसंख्यक विशेषकर मुस्लिम समुदाय है, 6 लाख गांवों में बिजली पहुंचाई तो 39 प्रतिशत से ज्यादा अल्पसंख्यक गांव जिनके घरों में उजाला हुआ, 22 करोड़ किसानों को किसान सम्मान निधि के तहत लाभ दिया, तो उसमे भी 33 प्रतिशत से ज्यादा अल्पसंख्यक समुदाय के गरीब किसान हैं। 8 करोड़ महिलाओं को “उज्ज्वला योजना” के तहत निशुल्क गैस कनेक्शन दिया तो उसमे 37 प्रतिशत अल्पसंख्यक समुदाय के गरीब परिवार लाभान्वित हुए। 22 करोड़ लोगों को “मुद्रा योजना” के तहत व्यवसाय सहित अन्य आर्थिक गतिविधियों के लिए आसान ऋण दिए गए हैं जिनमे 36 प्रतिशत से ज्यादा अल्पसंख्यकों को लाभ हुआ। यहीं नहीं, बिजली-सड़क-पानी-शिक्षा-रोजगार-स्वरोजगार कार्यक्रमों का भरपूर फायदा अल्पसंख्यक समाज के गरीब-कमजोर तबके को हुआ, क्योंकि अधिकांश योजनाएं गरीबों, कमजोर तबकों के लिए होती हैं और इन 70 वर्षों में अल्पसंख्यक विशेषकर मुस्लिम समाज गरीबी और अशिक्षा का शिकार रहा, इसी लिए मोदी सरकार की गरीब और कमजोर तबकों के सशक्तिकरण की सभी योजनाओं का भरपूर फायदा अल्पसंख्यक समाज को हो रहा है।
केंद्रीय प्रशासनिक सेवाओं एवं केंद्र सरकार की नौकरियों में अल्पसंख्यकों की भागीदारी 4.5 प्रतिशत से बढ़ कर लगभग 10 प्रतिशत हुई। हमारे लिए "सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास" राज नीति है और "समावेशी विकास" हमारा राज धर्म है।
"दौर है संग-ए-आजमाई का और मैं आईना सजाता हूँ। तुम हवाओं को हौसला बख्शों। मैं चिरागों की लौ बढ़ाता हूँ।।"