13 नवम्बर, 2015 को फ्रांस की राजधानी पैरिस पर हुआ आतंकवादी हमला और उसके एक हफ्ते बाद ही अफ़्रीकी देश माली की राजधानी बमाको में 20 नवम्बर को आतंकवादी हमला और विश्व में लगातार बढ़ रहा आतंकवाद का खतरा, भारत द्वारा लम्बे समय से कही जा रही इस बात को मजबूती देता है कि आतंकवाद अब किसी एक देश या क्षेत्र की समस्या नहीं रह गया है बल्कि आतंकवाद के दानव ने समस्त विश्व में अपने पैर पसार लिए हैं और यह पूरी दुनिया में शांति, स्थिरता और अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गया है।
अल-कायदा से जुड़े आतंकी संगठन द्वारा माली में हमला कर लगभग 27 लोगों की हत्या, ISIS द्वारा किये गए पैरिस हमले, जिसमे लगभग 128 लोगों की जान गई, हाल ही में मिस्र के सिनाई में रूस के विमान हादसे में लगभग 224 लोगों की जानें गई, बोकोहरम दवारा नाइजीरिया में मासूम लोगों की हत्या, केन्या, इराक, मिस्र और अन्य देशों में आतंकवादी घटनाओं में हजारों बेकसूर लोगों की जानें गई। इन घटनाओं के बाद अब पूरे विश्व को समझ आ जाना चाहिए कि आतंकवाद और कट्टरवाद के खिलाफ सभी देशों को एकजुट होना होगा। पैरिस हमले से हमें यह सबक भी मिलता है कि आतंकवाद पर दोहरा मापदंड ठीक नहीं क्योंकि आतंकवाद और कट्टरवाद अपने हर रूप में इंसानियत और विश्वशांति के सबसे बड़े दुश्मन हैं।
तेल के कुँए का लालच और उस पर कब्जे की होड़ में कुछ पश्चिमी देशों ने भी जाने-अनजाने में बगदादी और लादेन जैसी शैतानी ताकतों को पालने-पोसने में मदद की है। 2008 के मुंबई हमले की तर्ज पर पेरिस का आतंकी हमला भी वैसी ही क्रूरता और शैतानियत की नजीर हैं, ये संगठन किसी बेगुनाह का कैमरे के सामने सिर काटते दिखते हैं तो कभी बच्चों का स्कूलों में कत्ले आम करते, तो कभी मस्जिद में घुस कर नमाजियों की हत्या, इनकी इंसानियत को झकझोरने वाली हरकत, इस्लाम के मूल सिद्धांतों के विपरीत ही नहीं हैं बल्कि उसकी धज्जिया उड़ा रही है। इन शैतानी हरकतों को “इस्लामी आतंकवाद, जिहादी आतंकवाद” के नाम से मीडिया और दुनिया पुकार रही है।
यह सच है कि जब ऐसे हमले इस्लाम को सुरक्षा कवच बना कर अल-कायदा या ISIS करते हैं, तो पूरी दुनिया का शांति प्रिय मुस्लमान सहम जाते हैं, उन्हें लगता है कि इन शैतानी ताकतों की हरकतों का असर हम पर भी पड़ेगा और वह दुआ करते हैं कि "खुदा खैर करे", और ऐसी आतंकी ताकतों का खात्मा हो, इसीलिए जब लादेन जैसा आतंकी मारा जाता है, बगदादी के ठिकाने ध्वस्त होते हैं तो दुनिया का शान्ति प्रिय मुसलमान सुकून का एहसास करता है। दरअसल बढ़ रही वैश्विक अर्थव्यवस्था पर कब्जे की होड़ में ये ‘प्यादे’ आज ‘वजीर’ का रूप ले चुके हैं- तेल के कुँए से तेल की जगह धुआँ निकलने लगा है, इन कुओं का असर मुंबई से लेकर पेरिस, न्यूयॉर्क और दुनिया के हर हिस्से में देखा जा रहा है। यह धुआं इंसानियत की आत्मा को झकझोर रहा है।
पश्चिमी यूरोप आज ISIS और अल कायदा की गतिविधियों का केंद्र बन गया है। 25 जुलाई 1995 को पेरिस के सेंट माइकल रेलवे स्टेशन पर बम धमाका जिसमे सैंकड़ों लोग प्रभावित हुए-कई जाने गई; 11 सितम्बर 2001 को न्यूयॉर्क में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले में हजारों लोगों की मौत; 11 मार्च 2004 को मेड्रिड में ट्रेनों में बम हमले में 191 लोगों की मौत; 7 जुलाई 2005 में लन्दन के तीन सबवे ट्रेनों और बस में बम हमले में 52 लोगों की मौत; 2 नवम्बर 2011 को कार्टून व्यंग्य पत्रिका शार्ली एब्दो के पेरिस कार्यालय पर बम हमला; 22 जुलाई 2011 ओस्लो बम हमला; नार्वे के उटोया द्वीप पर युवाओं के शिविर पर हमले में 77 लोगों की मौत; 22 मई 2013 को लन्दन की सड़क पर ब्रिटिश सैनिक ली रिग्बी की हत्या; 24 मई 2014 में ब्रुसेल्स के संग्रहालय पर हमला; 7 जनवरी 2015 को शार्ली एब्दो कार्यालय पर हमला और अब पैरिस और माली में आतंकी हमला - यह बड़ी आतंकी घटनाएँ इस बात की तस्दीक करती हैं कि इन आतंकी-शैतानी ताकतों को कहीं ना कहीं से हथियार और आर्थिक मदद मिल रही है, कुछ ताकतें इस शैतानी तमाशे का तमाशबीन बन चुकी हैं। वरना इन आतंकवादी ताकतों के पास बेहताशा दौलत और अत्याधुनिक हथियारों का जखीरा कहाँ से आ रहा है ?
दुनिया की सभी ताकतों को "इंसानी जिहाद" छेड़ना होगा ताकि "इस्लामी जिहाद" के नाम पर पूरे विश्व को अपनी शैतानी हरकतों का शिकार बना रहे यह लोग ख़त्म किये जा सकें । ऐसे तत्व उन देशों के लिए भी खतरे की घंटी हैं जो जाने-अनजाने में इन शैतानी ताकतों के मददगार बने हुए हैं। आतंकवाद गंभीर वैश्विक समस्या और चुनौती बन गया है। सिडनी, ऑस्ट्रेलिया के इंस्टिट्यूट फॉर इकोनोमिक्स एंड पीस की ग्लोबल टेररिज्म इंडेक्स 2015 रिपोर्ट के अनुसार आतंकवादी घटनाओं से 2014 में 32,658 जानें गई जो 2013 के मुकाबले 80 प्रतिशत की वृद्धि है। 2014 में हुई मौतों में 51प्रतिशत के लिए आतंकवादी संगठन ISIS और बोकोहरम जिम्मेदार हैं। जाहिर है कि ये ताकतें ना तो हथियार की फैक्ट्री चला रही हैं ना धन हासिल करने के लिए कहीं डाका डाल रही हैं, फिर इन्हे कौन यह सब मुहैय्या करा रहा है।
ISIS ने सीरिया और आस पास के इलाके में जिस तरह कत्ले आम मचाया है उससे इन देशों में रहने पर संकट पैदा हो गया है, लाखों लोग अपनी जान बचाकर यूरोप के देशों में भाग कर जा रहे हैं। इससे संसाधनों का संकट भी उत्पन्न हो गया है। पेरिस हमले के कुछ आरोपियों ने फ्रांस में प्रवासियों की भीड़ का फायदा उठा कर प्रवेश किया। इस घटना के बाद सीरिया तथा अन्य देशों से आने वाले प्रवासियों की मुसीबतें बढ़ गई हैं। शायद ऐसा माहौल पैदा करना इन शैतानी ताकतों के मंसूबों का हिस्सा है ताकि लोग भाग कर किसी देश में शरण भी ना ले सकें और उनकी गोलियों का शिकार होते रहें।
आतंकवाद के पीछे सबसे बड़ा कारण बढ़ता कट्टरवाद भी है। कट्टरवाद के कारण कई देशों के युवा ISIS की "मजहबी अफीम" के नशे में दुनिया भर में खून-खराबों का हिस्सा बन रहे हैं। ISIS और अल-क़ायदा जैसे आतंकवादी संगठन कट्टरवाद और शैतानियत का सबसे भयानक रूप हैं। ये आतंकवादी संगठन हिंसा के बल पर अपना राज कायम करने का सब्ज बाग़ दिखा रहे हैं। अब वक़्त आ गया है कि आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक स्तर पर लड़ाई शुरू की जाए। आतंकवाद तथा कट्टरवाद की इस समस्या को ख़त्म करने के प्रयास में संपूर्ण विश्व, इस्लाम जगत, धर्म गुरुओं और विद्वानों को एकजुट होना होगा क्योंकि यह चुनौती इंसानियत के साथ-साथ इस्लाम के लिए भी उतनी ही गंभीर है।
14-15 नवंबर, 2015 को मिस्र के लुक्सर में आतंकवाद और कट्टरवाद की वैश्विक चुनौतियों पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया था जिसमे लगभग 42 देशों के इमाम, धर्म गुरु, बुद्धिजीवी, मंत्री शामिल हुए। इस सम्मेलन में मुझे भारत का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला। इस सम्मेलन में आतंकवाद और कट्टरवाद की गंभीर चुनौतियों पर विस्तृत चर्चा हुई, सभी देशों ने आतंकवाद और कट्टरवाद के खिलाफ एक स्वर में अपनी बात रखी और इस्लाम को सुरक्षा कवच बना कर कुछ ताकतों के खूनी खेल के खिलाफ लड़ाई का ऐलान किया। आतंकवाद की चुनौतियों को इस्लाम जगत के लिए बड़ी चुनौती बताया। इस सम्मेलन में सभी देशों के प्रतिनिधियों, धर्म गुरुओं, इस्लामी विद्वानों ने ISIS जैसे संगठनों द्वारा पूरी दुनिया में अपनी हरकतों से इस्लाम को बदनाम करने पर भी गहरी चिंता जताई।
इस्लाम जगत आज बहुत ही चुनौती भरे समय से गुजर रहा है और इसका मूल कारण है बढ़ता हुआ कट्टरवाद और कुछ आतंकी समूहों द्वारा धर्म का दुरूपयोग कर अपनी सत्ता स्थापित करने का प्रयास। ये समूह पवित्र कुरान की गलत व्याख्या अपने निजी स्वार्थ के लिए कर रहे हैं। इस्लाम शान्ति और भाईचारे का सन्देश देने वाला धर्म है, अधिकाँश मुस्लिम शान्ति प्रिय हैं और हिंसा तथा आतंकवाद का विरोध करते हैं। हमें यह याद रखना चाहिए कि सातवी शताब्दी में इस्लाम आधुनिकता में सबसे आगे था और यह सामाजिक न्याय, आर्थिक समानता, लैंगिक समानता और जनतांत्रिक मूल्यों पर आधारित था। इस्लाम धर्म ने तो कई शताब्दियों तक विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में शान्ति और स्थिरता स्थापित की। यह सिद्धांत अभी भी उतने ही मजबूत हैं। इन्हे और मजबूत और प्रभावशाली बनाने की जरुरत है जिससे अपने स्वार्थ के लिए धर्म का दुरूपयोग करने वाले तत्वों को पराजित और अलग थलग किया जा सके, ऐसे तत्वों से इस्लाम धर्म की छवि को विश्व व्यापी दुष्प्रभाव से बचाया जा सके।
धर्म का दुरूपयोग करने वालों को यह याद रखना चाहिए कि इस्लाम धर्म और पैगम्बर मोहम्मद (स. अ.) का सन्देश बिलकुल स्पष्ट है कि "आतंकवाद सभी प्रकार की हत्याओं से बड़ा अपराध है।" पवित्र कुरान के अनुसार "किसी बेकसूर की हत्या संपूर्ण मानवता की हत्या के समान है और किसी के जीवन की रक्षा संपूर्ण मानवता की रक्षा के बराबर है।" इस्लाम में यहाँ तक कहा गया है कि "युद्ध में भी औरतों, बच्चों और बुज़ुर्गों को मारना गलत है। हत्या करने वाले को कभी जन्नत नहीं मिलेगी।" पैगम्बर मोहम्मद (स. अ.) ने कहा है कि "इंसाफ केवल इंसानों के प्रति ही नहीं बल्कि समस्त जीव-जंतुओं के प्रति होना चाहिए।" यहाँ तक कि इस्लाम में "हरे पेड़ को काटने की भी मनाही है।" मानव जीवन की पवित्रता का सम्मान किया जाना चाहिए और इसका उलंघन सबसे बड़ा अपराध माना गया है।
धर्म की आड़ में आतंकवाद का शैतानी खेल खेलने वालों का मुकाबला समाज, धर्म गुरुओं,सरकारी एजेंसियों और मीडिया के समन्वय-संवाद से किया जा सकता है। मजबूत सांस्कृतिक और सामाजिक एकता, जिवंत और सुदृढ़ प्रजातंत्र के कारण भारत में आतंकवाद अपनी जड़ें नहीं जमा पाया है। कट्टरवाद पर लगाम लगाने की भारत की नीति कारगर रही है। विभिन्न भाषाओँ, धर्मों, जातियों के बावजूद भारत की सांस्कृतिक और सामाजिक एकता, सौहार्द के कारण आतंकवादी गुट देश के युवाओं को भ्रमित करने में असफल रहे हैं। समाज, धर्म गुरुओं, मीडिया ने इसमें एक अहम भूमिका निभायी है ।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मंचों से आतंकवाद के वित्तपोषण को ख़त्म करने का आह्वाहन किया है, इससे आतंकवादियों की क्षमताएं सीमित हो जाएँगी, आतंकवाद की कमर तोड़ी जा सकेगी। आतंकवाद के खिलाफ आम राय बनाने में भारत और प्रधानमन्त्री श्री मोदी ने सराहनीय भूमिका निभायी है। फिर भी भारत को ISIS, अल-कायदा और पाकिस्तान की धरती पर फल-फूल रहे आतंकवादी संगठनों से सतर्क रहने की जरुरत है। अब समय आ गया है कि आतंकवाद के समर्थकों-प्रायोजकों के खिलाफ भी एकजुट हो कर कार्रवाई की जाए। भारत पिछले कई दशकों से पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद का सामना कर रहा है, उसके शैतानी मंसूबों को ध्वस्त करता रहा है। देश के लोगों की एकता, सौहार्द भारत की सबसे बड़ी ताकत है, इस ताकत को हमें कमजोर नहीं होने देना है।
सीधे भारत का मुकाबला करने में असमर्थ पाकिस्तान आतंकवाद का सहारा ले रहा है, आतंकवादियों को अपनी जमीन पर पनाह दे रहा है। 2008 के मुंबई हमलों के गुनाहगार हाफिज सईद और अन्य आतंकवादी अभी भी पाकिस्तान में खुले आम घूम रहे हैं। आज आतंकवादियों, उनके संगठनों के लिए पाकिस्तान एक सुरक्षित ठिकाना बन गया है, जो न केवल भारत बल्कि संपूर्ण विश्व की शान्ति के लिए खतरा हैं। विश्व को ऐसे देशों को अलग-थलग करना होगा जो आतंकवाद को अपना समर्थन दे रहे हैं, प्रायोजित कर रहे हैं, तभी असली मायनों में आतंकवाद को पराजित और आतंकवादियों को नेस्तनाबूद किया जा सकता है।
हमें सावधानी बरतनी होगी कि अपने सियासी स्वार्थ के लिए आतंकवाद को मजहब या धर्म के चश्मे से ना देखा जाए। जिस दिन हम आतंकवाद को मजहब के साथ जोड़ते हैं उसी दिन हम ऐसी आतँकवादी ताकतों के शैतानी जाल में फंस जायेंगे जो मजहब को सुरक्षा कवच बना कर आतंक का शैतानी खेल खेल रहे हैं। इस्लाम का चोला पहन कर दहशत की दरिंदगी कर रहे लोगों का ना इस्लाम से सरोकार है ना इंसानियत से, उनका असूल अपराध है और ईमान कत्ले आम। यह ऐसे कायर और कमबख्त लोग हैं जो पूरी दुनिया की इंसानियत को तबाह-बर्बाद कर शैतानी साम्राज्य का सपना देख रहे हैं।